गजल
चुपचाप बैसल छी एकातमे
छै मोन मारल हमर प्रातमे
भेलै लऽ कर्जा बेँउँत भोजकेँ
भीड़सँ पड़ल किछुओ नै पातमे
खैनी चुना मिथिला बुधियार छै
बेचलक घर भांगसँ लऽकऽ भातमे
आलस कने छोरु देखू तखन
केहन मजा घामक बरिसातमे
चुप्पा बनू नै चुप्पी तोड़ि दिअ
साहसक संगे चल निर्यातमे
पार्टी खसै फेरो हँसिते उठै
आचरण खसतै लोकक बातमे
2212-22-2212
अमित मिश्र
चुपचाप बैसल छी एकातमे
छै मोन मारल हमर प्रातमे
भेलै लऽ कर्जा बेँउँत भोजकेँ
भीड़सँ पड़ल किछुओ नै पातमे
खैनी चुना मिथिला बुधियार छै
बेचलक घर भांगसँ लऽकऽ भातमे
आलस कने छोरु देखू तखन
केहन मजा घामक बरिसातमे
चुप्पा बनू नै चुप्पी तोड़ि दिअ
साहसक संगे चल निर्यातमे
पार्टी खसै फेरो हँसिते उठै
आचरण खसतै लोकक बातमे
2212-22-2212
अमित मिश्र
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