गुरुवार, 27 सितंबर 2012

गजल

गजल-२७

बरक  बाप  के  झोड़ा देखू ठूइस कऽ तिलकक पाय धेने छै
फटफटियो  ऊपरसँ  चाही  शर्त  ई  अलगे  जमाय  धेने छै

एक  हाथमे  शीतल  शरबत  दोसर  हाथमे चाहक प्याली
बरियाती  सभ राकस बनलै खैऽत-खैऽत सुलबाय धेने छै  

रुकय  नै  आमद  बादो  वियाहक  एकमुश्त  भेटल  से छोडू
किश्तमें जँ किछ त्रुटि भेलय तऽ मटिया-तेल सलाय धेने छै  

मध्यस्त मस्त छइ  पाबि  दलाली धिया बापके डीह बिकेलय
टाका  गीनियो धिये  बिकेलय घरक कोन्टा तंइ माय धेने छै

गौरव  नञि  गप्प कलंकक  ई मिथिला के माथ झुकल लाजे
एलै  एकैसम सदी  ई  तैयो  "नवल"  समाजमे  काय धेने छै

*आखर-२३ (तिथि-२७.०८.२०१२)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)

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