गजल-२७
बरक बाप के झोड़ा देखू ठूइस कऽ तिलकक पाय धेने छै
फटफटियो ऊपरसँ चाही शर्त ई अलगे जमाय धेने छै
एक हाथमे शीतल शरबत दोसर हाथमे चाहक प्याली
बरियाती सभ राकस बनलै खैऽत-खैऽत सुलबाय धेने छै
रुकय नै आमद बादो वियाहक एकमुश्त भेटल से छोडू
किश्तमें जँ किछ त्रुटि भेलय तऽ मटिया-तेल सलाय धेने छै
मध्यस्त मस्त छइ पाबि दलाली धिया बापके डीह बिकेलय
टाका गीनियो धिये बिकेलय घरक कोन्टा तंइ माय धेने छै
गौरव नञि गप्प कलंकक ई मिथिला के माथ झुकल लाजे
एलै एकैसम सदी ई तैयो "नवल" समाजमे काय धेने छै
*आखर-२३ (तिथि-२७.०८.२०१२)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
बरक बाप के झोड़ा देखू ठूइस कऽ तिलकक पाय धेने छै
फटफटियो ऊपरसँ चाही शर्त ई अलगे जमाय धेने छै
एक हाथमे शीतल शरबत दोसर हाथमे चाहक प्याली
बरियाती सभ राकस बनलै खैऽत-खैऽत सुलबाय धेने छै
रुकय नै आमद बादो वियाहक एकमुश्त भेटल से छोडू
किश्तमें जँ किछ त्रुटि भेलय तऽ मटिया-तेल सलाय धेने छै
मध्यस्त मस्त छइ पाबि दलाली धिया बापके डीह बिकेलय
टाका गीनियो धिये बिकेलय घरक कोन्टा तंइ माय धेने छै
गौरव नञि गप्प कलंकक ई मिथिला के माथ झुकल लाजे
एलै एकैसम सदी ई तैयो "नवल" समाजमे काय धेने छै
*आखर-२३ (तिथि-२७.०८.२०१२)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें