मंगलवार, 31 जुलाई 2012

गजल



आइ मेला मे माँ झुनझुना किने दे
चल सिया झा के मीठ पेड़ा किने दे

कह कटै छै छागर किए खून पसरल
लिखल छै जत' कटनाइ पतरा किने दे

लाल फूक्का दे गै पियर फूल छापल
लाल देबै मिरचाइ सूगा किने दे

नाच नाचै नटुआ कते भीड़ लागल
हमहुँ सीखब बजेनाइ बाजा किने दे

दीप चल बारब हमहुँ मंदीर जगमग
"अमित" करबै उपवास केरा किने दे

फाइलातुन-मुस्तफाइलुन-फाइलातुन
2122-2212-2122
बहरे-खफीफ

अमित मिश्र

गजल


पूब मे उगल ललका थारी त' देखू
दूइभक घर चमा चम मोती त' देखू

भोर भेलै कते बौआ कान' लागल
सब चिड़ैयाँक नव किलकारी त' देखू

आइ इस्कूल नै जेतै सोचि लेलक
भेल मारिक डरे बेमारी त' देखू

ठाढ़ कखनसँ गरम दूधक लेल बौआ
रातिमे पीबि गेलै पारी त' देखू

आइ जेतै वियाहक एलै निमँत्रण
लाल आ पियर माँ के साड़ी त' देखू

जन्मदिन "अमित" बौआ के आइ हेतै
नरम पूरी गरम तरकारी त' देखू

फाइलातुन-मफाईलुन-फाइलातुन
2122-1222-2122
बहरे- असम

अमित मिश्र

रूबाइ



वर्षा मे हँसि हँसि क' जतबे भीजै छी
प्रकृति के अहाँ त' ओतबे जड़ाबै छी
बूनक भाग बुझियौ आइ चमकि गेलै
आँजुर मे ल' क' देहपर छिरियाबै छी

रूबाइ



सप्पत खा हम जतबे दूर भागै छी
नेहक झड़कल हम ओतबे लागै छी
बोतल संग दबाइ लै छी बिसरै लेल
तैयो पिड़ित भ' क' महिनो भरि जागै छी

रूबाइ



घोघक काज नै छै आजुक समाजमे
पश्चिमक हवा लागल लाज लेहाजमे
एखन नै भेटत पिजड़ा बंद सूगा
मोनक करत स्वतंत्रता आबाज मे

गजल


भेलै मुड़न जेठका के
सब संग मे छोटका के

छै केश जनमे बला ते
छीलल बहिन मेनका के

नानी पठेलखिन कपड़ा
काजर सजल टोटका के

बाजा बला पाइ माँगै
हजमा कहै मोटका के

छै भोज मे पाँति लागल
पत्ता भरल पतरका के

मुस्तफइलुन-फाइलातुन
2212-2122
बहरे-मुजास

अमित मिश्र

गजल

बाल गजल

खा ले रे बौआ दूधे भात
देबौ हम काल्हि व्यंजन सात

माछी छौ कौआ देतौ चोँच
देने छीयौ केला के पात

देबौ खेलौना साँझे आनि
मानेँ रे सोना हमरो बात

देखै छौ हजमा तोरे देख
देबौ लड्डू चल ने एकात

नै खेबेँ लागत बड़का पाप
रे नै हेतै दूधक बरिसात

खा बनलेँ बढ़ियाँ बौआ "अमित"
फेरो हम देबौ दूधे प्रात

22-222-2221

अमित मिश्र

सोमवार, 30 जुलाई 2012

गजल

हेरौ कोआ खसा दे एगो आम हमरो लेल
देबौ बाली मए जे देतै दाम हमरो लेल

चल-चल गे बूचनी चलै आब खेलएब
भ ' गेल देलकै जे मए काम हमरो लेल

नहि छ्मकै एना लए कँ अपन गुडिया
तोरा सँ सुन्नर देथीन राम हमरो लेल

बहुत केलहुँ काज कमेलहुँ बड्ड राज
आबो तँ घुरि आउ बाबू गाम हमरो लेल

सबकेँ नाम गे मए कते सुन्नर-सुन्नर
किएक नहि 'मनु' सन नाम हमरो लेल

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१६)
जगदानन्द झा 'मनु'

गजल






बाल-गजल-१४

भोर भेलै शोर भेलै

काँचे निन्न खोर भेलै


माघ मास शीत जल

दहो-बहो नोर भेलै


काँट कंठ मे गड़लै

भोग नहि झोर भेलै


भैंस भेलै पारी तरे

छाल्ही डाढ़ी घोर भेलै


थारी बाटी पिटैत छै

माय मोन घोर भेलै

---वर्ण-८----

गजल






बाल-गजल-१२(विदेह ई पाक्षिक)

माय गै हमरो कीनि देऽ नेऽ चान एकटा

देऽ नेऽ गुड़क पूरी फोका मखान एकटा


चमकै इजोरिया लागै छै कोजगरे छै

बाबा हमरो दीअ ने खिल्ली पान एकटा


चकलेट-बिस्कुटो भऽ गेलै कत्ते महग

पप्पा हमहूँ करबइ दोकान एकटा

छोटको चच्चा केतऽ आब भऽ गेलै ब्याह गै

मैंया हमरो कनिया कऽ दे जुआन एकटा


चान पर घर हेतै तारा पर दलान

"चंदन"हमहूँ भरबै उड़ान एकटा

--------------वर्ण-१५------------------

गजल





बाल-गजल-१३(विदेह ई पाक्षिक)

पकड़ि के दाबा चलइ छै

खने ठेहुनियाँ भरइ छै


मधुर सनके बोल लागै

जखन माँ-पप्पा बजइ छै


चढ़िकऽ छाती पर कका केँ

भभा के लगले हँसइ छै


सुगा मैना जखन बाजय

सुनिकऽ थपड़ी पिटइ छै


मनोरथ सभटा पुरौतै

बइस के चंदन गुनइ छै

---------वर्ण-१०-------
१२२२ २१२२

बहरे-मजरिअ

ई हमर पहिल अरबी बहर आधारित बाल-गजल अछि से हमराअपनो कने झुझूआन लगैत अछि ....मुदा अपने सभसँ

विस्तृत प्रतिकृयाक आस धरौने छी.

गजल






बाल-गजल-११

चिक्का कबड्डी खेलबइ खेत पथार मे

हमर नाह चलतइ ओलती धार मे


इसकुल सँ जखन घुमबइ साँझ मे

बाबा संग मे घुमबइ धारक पार मे


आमक गाछी खोपड़ी तर मचान पर

काका संगे हमहुँ बैसबै रखबार मे


गीजल-गाँथल हम नहि खेबौ बाटी मे

माय गै हमरो साँठि के दहीन थार मे


मुरही कचरी झिल्ली खेतै छैक सेहन्ता

"चंदन"तैँ छैक लोढ़हा लोढ़ैत नार मे

----------वर्ण-१५---------------

गजल






बाल-गजल-१०

एकदिन हमरो हेतइ मकान

एकदिन हमरो हेतइ बथान


एकदिन हमहुँ कीनब समान

हमरो घर बनतै पू-पकवान


एकदिन हमहुँ बुलबइ चान

अंतरिक्ष मे हेतै हमरो दलान


सभकेयो अपने केयो नहि आन

हमहुँ बनबै गाँधी सन महान


विद्या-वैभव के लेल अनुसंधान

करय जे "चंदन" बनय महान

-----------वर्ण-१३---------

गजल






गजल-६२

आखर-आखर गानि-गानि क' लिखबै हम

मात्रा-बहरे फानि-फानि क' लिखबै हम


मायक भाषा पूज्य जानि क' लिखबै हम

अप्पन छाती तानि-तानि क' लिखबै हम


कविकोकिल के मान राखि क' लिखबै हम

मिथिला-मैथिल युद्ध ठानि क' लिखबै हम


फगुआ-चैती गाबि-गाबि क' लिखबै हम

रौदी-दाही कानि-कानि क' लिखबै हम


भासल सपना छानि-छानि क' लिखबै हम

"चंदन"भावहि सानि-सानि क' लिखबै हम


222-2212-1122-2

आखर-आखर गानि-गानि की लिखबै हम

मात्रा-बहरे फानि-फानि की लिखबै हम ?


मायक भाषा पूज्य जानि की लिखबै हम

अप्पन छाती तानि-तानि की लिखबै हम ?


कविकोकिल के मान राखि की लिखबै हम

मिथिला-मैथिल युद्ध ठानि की लिखबै हम ?


फगुआ-चैती गाबि-गाबि की लिखबै हम

रौदी-दाही कानि-कानि की लिखबै हम ?


भासल सपना छानि-छानि की लिखबै हम

"चंदन"भावहि सानि-सानि की लिखबै हम ?

222-2212-1222-2

गजल






गजल-६१

ओ जे बताह बैसल छै सड़कक कात मे

एकोरती नहि लाज छैक ओकरा गात मे


पेटकुनिया लधने जे सूतल एकात मे

दुइयो दाना भातक नहि ओकरा पात मे


दू लबनी पीबि बनै छैक जे नृप साँझ मे

तकरा भेटै ने उसनल अल्हुआ प्रात मे


अपनो घर मे नै कनियो मोजर जकरा

दिल्ली केर सरकार छैक तकरा लात मे


जकरा ले सेहन्ता नवान्नो अपना खेतक

"चंदन"देबै नै पएर तकरा जिरात मे

-------------------वर्ण-१६-----------

गजल






गजल-६०

जकरे देह केर घाम चानन सन गमकै छै

तकरे टुटली मरैया स्वर्गक सुख बरसै छै


अनकर माथ पर बज्जर जे कियो खसबै छै

अपने बोलीक लुत्ती से अपने घर जड़बै छै


नवतुरिया छै बुड़िबक बुढ़-पुरान कहै छै

ओहोछलै कहियो नौसिखुए सेनै मोन रहै छै


चुबय ककरो चार केयो भासल भीत सटै छै

खिड़की बुन्न निहारे केयो आनक आड़ि छटै छै


कंठी-माला,चानन-टीका,धोती-कुर्ताखूब सजै छै

लेकिन नाञ्गट-भूखल के देखिते नाक मुनै छै


कन्यागत छै कानि रहल वरागत बिहुँसै छै

केयो खून बेचकऽ देलकै केयो सऽख पुरबै छै


ई की भेलै जे सगरो खाली बहुरुपिया घुमै छै

"चंदन"एलैकलिकाल जे खाली खूनेटा पिबै छै

---------------------वर्ण-१८-----------------

गजल

प्रस्तुत अछि क्रांति कुमार सुदर्शन जीक ई बाल गजल ( ऐमे व्याकरणक कमी छै, मुदा शाइर नव छथि आ उम्मेद अछि जे आगू ई आर बेसी नीक लिखता )


एखन देख'मे छोट लगै छी
तैयो कछुआ चालि चलै छी

पएर हमर डगमग करैए
तैयो हम नभ-चान देखै छी

बोली हमर क क ट ट प प
तैयो महान बनब से स्वपन देखै छी

बहुत दूर अछि दिल्ली
अमेरिकाक नाम सेहो सुनै छी

चढ़ब हम चान आ मंगल पर
आब कहू की हम अँहासँ कम लगै छी

गजल

प्रस्तुत अछि जवाहर लाल काश्यप जीक ई बाल गजल ( ऐमे व्याकरणक कमी छै, मुदा शाइर नव छथि आ उम्मेद अछि जे आगू ई आर बेसी नीक लिखता )


खसलै पर नहिं कनलै बौआ
खसलै पर फेर उठलै बौआ

हाथ पकडि चललै बौआ
हाथ छोडि क चललै बौआ

अपने पैर पर दौडलै बौआ
चान के छू लेलकै बौआ

गजल

प्रस्तुत अछि श्रीमती इरा मल्लिक जीक ई बाल गजल--------




सौँसे गाम तूँ मारने फिरैछेँ भरिके खूब टहल्ला रौ
जँ पढ़ै लिखै लेल कहबौ तँ बहुत करै छेँ हल्ला रौ

छौँरा सब सँग खेलै छे भरि दिन कबड्डी गुल्ली डँडा
नहि परलौ एखन धरि तोरा बपहियासँ पल्ला रौ

आबय दहिन गाम हुनका देखथुन तोहर लिल्ला
दैवो नहिँ बचेथुन जखन तोरथुन तोर कल्ला रौ

हम्मर बातक मोजर नै कैन्को ख़ूब कर्हि बदमस्ती
एकै बेरक सटकानि सँ खुलि जेतौ ग्यानके तल्ला रौ

आखर 20

रविवार, 29 जुलाई 2012

मैथिली बाल गजलक अवधारणा

जेना कि नाम सँ स्पष्ट अछि, बाल गजल माने भेल नेना-भुटकाक लेल गजल। बाल गजलक अवधारणा मैथिली मे एकदम नब अछि आ पहिल बेर २४ मार्च २०१२ केँ श्री आशीष अनचिन्हार ऐ अवधारणा केँ सामने आनलथि। बहुत अल्प समय मे बाल गजल बहुत प्रसिद्धि पओलक आ बाल गजल कहनिहार गजलकार सभक एकटा विशाल पाँति ठाढ भऽ गेल। ऐ मे सर्वश्री गजेन्द्र ठाकुर आ आशीष अनचिन्हार जकाँ स्थापित गजलकार तँ छथि, एकर अलावे नब गजलकार सब सेहो बाल गजल कहबा मे विशेष अभिरूचि देखौलन्हि। बाल गजल कहनिहार नब गजलकार सभ मे सर्वश्री मिहिर झा, मुन्ना जी, इरा मल्लिक, अमित मिश्रा, चन्दन झा, पंकज चौधरी 'नवलश्री', राजीव रंजन झा, जगदानंद झा 'मनु', रूबी झा, प्रशांत मैथिल आदि अनेको गजलकार छथि। "अनचिन्हार आखर", जे मैथिली गजलक एकमात्र ब्लाग अछि, देखला पर पता लागैत अछि जे बाल गजलक अवधारणा अयलाक बाद सँ एखन धरि(ई आलेख लिखबा तक) ७३(तिहत्तरि) टा बाल गजल ऐ ब्लाग पर पोस्ट भऽ चुकल अछि, जे अपने आप मे एकटा कीर्तिमान अछि। खास कऽ एतेक कम समय मे एतेक पोस्ट आएब बाल गजलक लोकप्रियताक खिस्सा कहि रहल अछि। बाल गजलक विधा एकटा स्वतन्त्र विधा बनबाक बाट मे अग्रसर अछि, जे एतेक कम समय मे एतेक संख्या मे बाल गजल कहनिहार गजलकार आ बाल गजलक संख्या सँ स्पष्ट अछि। संगहि किछु लोक केँ मिरचाई सेहो लागब शुरू अछि आ ओ लोकनि बाल गजलक सम्पूर्ण अवधारणा केँ नकारबाक कुत्सित असफल प्रयास मे जत्र कुत्र अंट शंट पोस्ट देबऽ लागलाह। ई गप आर स्पष्ट करैत अछि जे बाल गजलक विधा मजबूती सँ स्थापित भऽ रहल अछि। कियाक तँ सफल व्यक्ति आ विधा सभक आकर्षणक केन्द्र बनैत अछि आ बाल गजल सेहो सभक आकर्षणक केन्द्र बनि चुकल अछि, चाहे ओ गजलकार होईथि, पाठक होईथि, आलोचक होईथि वा जरनिहार लोक सभ होईथि। जखन मैथिलि गजलक चर्च भऽ रहल अछि, तखन श्री आशीष अनचिन्हारक चर्चा स्वभाविक अछि। मैथिली गजलक विकास मे हुनकर योगदान हुनकर धुर विरोधी लोकनि सेहो मानैत छथिन्ह। मैथिली बाल गजलक अवधारणा लेल श्री आशीष अनचिन्हार मैथिली साहित्य मे अपन अनुपम स्थान बना चुकल छथि। बाल गजलक अवधारणा सेहो हुनके छैन्हि, जे बहुत सफल भेल अछि।
आब किछु गप करी मैथिली बाल गजलक रचना सभक संबंध मे। हमरा विचार सँ बाल गजल नेना भुटकाक लेल रूचिगर तँ हेबाके चाही, संगहि ऐ मे कोनो स्पष्ट सामाजिक सनेस होइ तँ ई सोन मे सोहाग जकाँ हएत। ओना तँ सभ बाल गजल कहनिहार गजलकार सभ ऐ मे सक्षम छथि आ नीक सँ नीक बाल गजल लिख रहल छथि, मुदा ऐ सन्दर्भ मे हम श्री गजेन्द्र ठाकुरजीक बाल गजलक उल्लेख करब उचित बूझि रहल छी। हुनकर एकटा बाल गजलक मतला अछिः-

कनियाँ पुतरा छोड़ू आनू बार्बी
जँ रंग गुलाबी छै तँ जानू बार्बी

ऐ गजल केँ पूरा पढि कऽ कने देखियौ। ई गजल कनिया पुतराक उल्लेख करैत नेना-भुटकाक मनोरंजन तँ करिते अछि, संगहि अजुका बाजारवादक बलिवेदी पर कुर्बान भेल मनुक्खक मार्मिक विवेचना सेहो करैत अछि। एहन आरो कतेको बाल गजल सभ "अनचिन्हार आखर" पर भेंटैत अछि, जकरा ऐ ब्लाग पर पढल जा सकैत अछि। ई गजलकार सभक सामाजिक संवेदना केँ प्रकट करैत अछि आ हम ऐ लेल सभ गजलकार केँ साधुवाद दैत छियैन्हि। हम एहने बाल गजलक आस गजलकार सभ सँ लगओने छी। कियाक तँ गजलकारक सामाजिक दायित्व सेहो छै, जे पूरा हेबाक चाही। आधुनिक मैथिली गजलकार सब मे ई क्षमता अछि आ ओ दिन दूर नै अछि जखन एक सँ एक सुन्नर आ बालोपयोगीक संगे सामाजिक समस्या पर बाल गजलक भरमार हएत। व्याकरणक हिसाबेँ मैथिली बाल गजल नीक बाट धएने अछि। अनचिन्हार आखरक टीमक परिश्रमक कारणेँ मैथिली मे बहरयुक्त गजलक काल शुरू भऽ चुकल अछि आ सरल वार्णिक बहर(जकर अवधारणा श्री गजेन्द्र ठाकुरजी देलखिन्ह) केर अलावे आब अरबी बहर मे गजल कहनिहार गजलकारक कमी नै छै। बाल गजल अपन शुरूआते सँ बहरयुक्त अछि, जे बाल गजलक लेल शुभ संकेत अछि। शुरूआतिए समय मे जे आ जतबा बाल गजल लिखल गेल अछि, ओ सभ बहर मे अछि, चाहे सरल वार्णिक बहर होइ वा अरबी बहर। बहरक अलावे रदीफ आ काफियाक नियमक पालन सेहो पूरा पूरा भऽ रहल अछि। व्याकरण पालनक ई प्रतिबद्धता निश्चित रूपे बाल गजलक सफलताक गाथा लिखबा मे सहायक हएत।
मैथिली गजलक बढैत डेग संग आब मैथिली बाल गजलक डेग सेहो उठि गेल अछि। मैथिली बाल गजल जाहि द्रुत गति सँ अपन डेग उठओलक अछि, ऐ सँ तँ यैह लागैत अछि जे अगिला साल आबैत आबैत मैथिली बाल गजलक पोथी प्रकाशित भऽ सकैत अछि। संगहि इसकूलक पाठ्यक्रम मे बाल गजल सम्मिलित हेबाक संभावना सेहो साकार रूप लऽ सकत। पाठ्यक्रम मे सम्मिलित हेबाक बाद मैथिली बाल गजल सभ पढनिहार-पढौनिहारक संज्ञान मे नीक जकाँ आओत आ सामाजिक विकासक संरचना मे अपन महत्वपूर्ण योगदान, जे अपेक्षित अछि, सेहो दऽ सकत।

गजल


प्रस्तुत कऽ रहल छी हम अपन पहिल बाल गजल। ई गजल एकटा बाल मजदूरक पीडा पर आधारित अछि। अहाँ सभक प्रतिक्रियाक आकांक्षी छी।
बाल गजल
करबा नै मजूरी माँ पढबै हमहूँ
नै रहबै कतौ पाछू बढबै हमहूँ

हम छी छोट सपना पैघ हमर छै गे
कीनब कार जकरा पर चढबै हमहूँ

टूटल छै मडैया आस मुदा ई छै
सोना अपन छत कहियो मढबै हमहूँ

चारू कात पसरल दुखक अन्हरिया छै
कटतै ई अन्हरिया आ बढबै हमहूँ

पढि-लिख खूब सब तरि नाम अपन करबै
जिनगी "ओम" सुन्नर ई गढबै हमहूँ
दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ
(मफऊलातु-मफाऊलातु-मफाईलुन)- एक बेर प्रत्येक पाँति मे

गजल

गजल-१९

मंच परमे अनेरे धमकला सँ की
बहीरक समूहमे बमकला सँ की

पैंच लइयोकऽ चान बंटै छै इजोत
हीराके बन्न तिजौरी चमकला सँ की

कर्मठ के काया लेढायलो तऽ कंचन
निठल्लाके सजि-धजि छमकला सँ की

स्वभावक सुगंध आकर्षित करय
गुलाबजलसँ नहाऽ गमकला सँ की

क्रांति के धार बनिकऽ बहबै "नवल"
डबरा बनिकऽ कतौ ठमकला सँ की

***आखर-१४
(सरल वार्णिक बहर)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
(तिथि : २७.०७.२०१२)

गजल

गजल-१८

दू - आखर कागत पर उतरल सौंसे हाथ सियाही लागल
अर्थ नै बूझय आखर के बस हाथ देखि वाह-वाही लागल

खर डोलेलन्हि दू टा तकरो सात कोस धरि ढोल पिटेलथि
मंच सजाकऽ लोक हकारल आसन ऊंचगर शाही लागल

धोती-कुरता सजल देहमें चौक-चौबटिया करैत फुटानी
बेटा सभ नेता बनि घूमय बाप कतहु चरवाही लागल

अप्पन थारी कूकुर चाटैत अनकर हिस्सा लूझि रहल छै
जेहने भोजन तेहने शोणित ज्ञानक पात में लाही लागल

काजक बेर में दोग नुकायल खाय काल देने पेटकुनिया
सांझ परैत धऽ लैछ रतौन्ही भोर होइत अगराही लागल

पुरुखक बीच में भेल निप्पत्ता मौगी लग पुरखाहा छाँटैत
बाहर सिह्कल मरचुन्नी आ अंगना अबैत पसाही लागल

नेताजीके कुर्सी भेटलन्हि जन-जनके दुःख हरथिन्ह आब
गाम ओगरतै चोर-उचक्का सेंध खूनई में सिपाही लागल

पुरना गाछक नमहर धोधरि शोकाकुल छै भेल "नवल"
नव-अंकुर के नव-पल्लव कुसुमित जे देखै डाही लागल

***आखर-२३
(सरल वार्णिक बहर)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
(तिथि-२3.०७.२०१२)

गजल

गजल-१७

लोकतंत्र में लोकेके सरकार होएत छैऽ
सभसँ पैघ शक्ति मताधिकार होएत छैऽ

कर्तव्यके सेहो तऽ सभ बखरा लगा लियऽ
संविधानमें छुच्छे नै अधिकार होएत छैऽ

आरक्षणक ई मांग ओकरे छजैत छैक
बुइधसँ शरीरसँ जेऽ लाचार होएत छैऽ

भेल तीत फर दोख गाछे केर कियैक
योगी-
वैद्द्य घर में सेहो बीमार होएत छैऽ

प्रेमक पुछारि होइत किराना दोकान में
 

आब एहनो गैंहकी  आ  पैकार होएत छै

काल संग नै चलल से कालातीत भऽ गेलै
काल संग जेऽ चलय कलाकार होएत छैऽ

ईरखक घमासान छै झटकारिकऽ चलू
"नवल" डेऽगेऽ-डेग पलटवार होएत छैऽ

***आखर-१६
सरल वार्णिक बहर
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
(तिथि-२१.०७.२०१२)

गजल

गजल-१६

ई प्रश्न जेऽ उठल आब बाबुक बाद के
भऽ गेल कान ठाढ़ सभ दर-दियाद के

उपजाके बेर में त हांसू पिजा रहल
अहि खेतमें मुदा देत पाइन-खाद के

ममरी तऽ खा गेलै सभ लुझि-लपटि कऽ
जे पेईन में बंचल छै सेऽ पीत गाद के

बांटि-
चूटि सभकिछु बखरा लगा लियऽ
सहतैक ई अनेरे बरदिक लाद के

गीजल जेऽ पाईके ओ भीजत की नोरसँ
वानर की जानऽ गेल आदक सुवाद के

भतबऽरी के प्रथा
छै चलल गामे-गाम
कहतै समाद केऽ आ सुनतै समाद केऽ

करेज सँ नञि ओ "नवल" पेटसँ छलै
संबंध केर गंध उड़ल संग पाद केऽ
***आखर-१५
(सरल वार्णिक बहर)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
(तिथि-२४.०६.२०१२)

गजल

बाल गजल-१०

काँचे खटहा सरही पड़ में मारय मूस हबक्का यौ
लड्डूओ नञि खा हेतय ओकरा दांत कोंतेतै पक्का यौ

राति दिवालिक दीप जड़ेबै खेबै हम बताशा लड्डू
हुक्कालोली गेनी भंजबय फोड़बय खूब फटक्का यौ

चिप्स-चरौरी चूड़ा भूजल लागत करू तइयो खेबै
बीछ-बीछ मिरचाय दीयउ भूजा हमरो दू फक्का यौ

बारी में जा कोना चलेबै अप्पन छोटकी कठही गाड़ी
माटिक नमहर ढेपा तर फँसतै गाड़ी के चक्का यौ


पन्नी ताकू गेन बनाकऽ अंगनें में किरकेट खेलेबै
गेंद दियौ गु
ड़कौवा हमरा हमहूँ मारब छक्का यौ

बंटीसँ नञि मीत लगेबै सी नम्मर के छै बदमाश
अपने मारि बझाबै सभसँ हमरा कहै उचक्का यौ


इस्कुल के बस्ता में राखल मुरही नै मसुवाई कहीं
"नवल" हाटके बाट तकै छै कचरी आनब कक्का यौ

 

*आखर-२० (तिथि :२७.०७.२०१२)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)

गजल

बाल गजल-९

इसकुल के बस्ता छै भारी हम नञि टंगबौ टांगै तू
पाइनक थर्मस हमरा चाही सुन भैया नै मांगै तू

मोरक चित्र बनाकऽ आनऽ देलथि हमरा मैडम जी
माँ फोटो तू पाड़ि दे लेकिन सुन ओकरा नै रांगै तू

छिट्टा तर जे धैल नुकाकऽ भनसा घर गमकलै माँ
संग सोहारी पाकल कोआ खेबय कटहर भांगै तू

ओलतीके काते-काते हम ठाढि गुलाबक रोपने छी
ओरियाकऽ धान पसारय माँ गाछ नै फूलक धांगै तू

"नवल" छोट नञि आब ओते काज अढा किछ हमरो
हमरा हाथ पघरिया दऽ दे माँ जारणि नञि पांगै तू

 

*आखर-२० (तिथि :२७.०७.२०१२)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)

गजल

बाल गजल-८

आमक गाछपर झूला लगाएब ना
अपनों झूलब सभके झुलाएब ना

ने केरा डम्फोरि आ ने लत्ती मोटगर
सउन बाँऽटिकऽ जउड़ बनाएब ना

कखनहुं ऊंचगर निच्चा कखनहुं
झूले संग हमहुँ आएब-जाएब ना

खसतय गोपी धऽपर -धऽपर- धप
झूला के बहन्ने ठाईढ डोलाएब ना

झगड़ा नञि हेतै कियो बीछय गोपी

हम सभ संगी मिल-जुलि खाएब ना

कसि-कसिकऽ आर झूलाबय हमरा
ऊँचगर जा हम चान के पाएब ना

ठाढ़ि ओदरलय टुइट गेल झूला

"नवल" चट सभ दौड़ पड़ाएब ना


*आखर-१४ (तिथि-१४.०७.२०१२)

©पंकज चौधरी (नवलश्री)

गजल

बाल गजल-७

संचमंच भऽ रह्बौ सदिखन आब नै करबौ हुलहुल गै
मोन लगा कऽ पढ़बौ देखिहन्हि जेबौ सभ दिन इसकुल गै

संगी संगे हिल - मिल रहबै पैघ के सभटा कहल करबै
कान पकड़लौं आब ने करबौ बदमाशी हम बिलकुल गै

खाय-काल नकधुन्नी केलहुं तैं लटि कऽ हम एहन भेलहुं
डाँड़ सँ पेंटो सर-सर ससरल अंगो होई छै झुलझुल गै

सागो खेबय सन्नो लेबय आब नै कखनो मुंह बिचकेबय
परसन देऽ तीमन - तरकारी दालि दे आरो दू करछुल गै

दूध पीबि हम सुरकब दही खूब खेबय खाजा-पनतोआ
तइ परसँ हम आमो खेबऊ पीयर-पाकल गुलगुल गै

देह्गर-दशगर संगी-तुरिया हमरा आंइख देखाबै जे
कसरत करबै देह बनेबै करतै डरे ओ छुलछुल गै

आशीर्वचन तोहर अमृत सन आँचरि आँगन ममता के
राजा बेटा "नवल" तोहर माँ चहकत बनि
कऽ बुलबुल गै
 

*आखर-२३(तिथि- १२.०७.२०१२)
©पंकज चौधरी (नवलश्री

शनिवार, 28 जुलाई 2012

गजल

प्रस्तुत अछि प्रशांत मैथिल जीक ई बाल गजल



शब्दक मूर्त्ती गढ'क चाही
खूब मोन स पढ'क चाही

हमही अयाचीक शंकर
इतिहास के रच'क चाही

थैआ डेगा डेगी लऽरे लऽरे
खसि उठिक बढ'क चाही

नञि बाँचल फुनगी डारि
आ चान पर चढ'क चाही

कनिञा पुतरा साम चको
नाम भारती मढ'क चाही

वर्ण-१०

गजल

प्रस्तुत अछि श्रीमती इरा मल्लिक जीक ई बाल गजल





डेग हमर छोट एखन लछ्य बहुत दूर अछि
नापि लेबै सफलताक बाट मेहनतिसँ बुझै छी

केतबो बाधा एतय बाटमे ढकेलि आगू बढ़बै
मनमे जँ ठानि लेलौँ फेर पाछु मुड़ि नहि सकै छी

मिथिलाक गौरवगाथासँ कहाँ कियौ अनजान छै
छलै कहियो दिव्य मिथिला एखन तँ माटि फकै छी

खूब पढ़ि आगू बढ़बै देशक हित काज करबै
स्वर्णिम मिथिलाके सपना अपन आँखिमे तकै छी

मिथिला अछि सुँदर ठोप भारतक ललाट केर
विश्वमे सम्मानित हो से भगीरथ प्रयास करै छी

(वर्ण -19)

हजल

गदहराज धन्य छी दियS  सदबुद्धि हमरो अहाँ
उपर लदने बोझ नै आँखि देखाबी ककरो अहाँ

धियान मग्न रहि मधुर तान ढेंचू-ढेंचू करै छी
मन्त्र  जनैत छी शास्त्रीय गायन कए सगरो अहाँ

मनुख पबैत सम्मान विशेष नाम अहीँक ल ' क '
बिन आपति बर्दास्त करी नहि करी झगरो अहाँ

स्वर्ग गेलौं लागले छान ई कथा जगजाहिर अछि
करु पैरबी कनी हमर बियाहक  जोगरो अहाँ

गृहस्थक जुआ कान पर 'मनु' खटब आब कोना
दिय ' गदहपन जँ बुझलौं अपन हमरो अहाँ

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१९)
जगदानन्द झा 'मनु'  

रुबाइ

प्रस्तुत अछि मुन्ना जीक रुबाइ





जतेक चाही जी लिअ सपनामे

राखू यथार्थ संजोगि अपनामे

उधियाउ नै एकपेड़िया बाटपर

नै तँ जाएत नापल जिनगी नपनामे

रुबाइ

प्रस्तुत अछि मुन्ना जीक रुबाइ


ऐ शत्रुकेँ तँ तोड़ै लेल दम चाही

मात्र चित्रगुप्त नै ऐ लेल यम चाही

अहाँसँ किछु नै बिगड़तै एकर

एकरा शोधै लेल तँ खाली हम चाही

रुबाइ

प्रस्तुत अछि मुन्ना जीक रुबाइ



ताकि कनडेड़िए कतए नुकेलहुँ

कहू फेर किए नजरि फेरि लेलहुँ

बिहुँसैत बैसल छी सोंझा अहाँ

आब कहू अहीँ कोना फेर एलहुँ

रुबाइ

प्रस्तुत अछि मुन्ना जीक रुबाइ



दै छिऐ आशीर्वाद लगा क' फानी

छी जोगारमे ऐखनो जे कते तानी

वाह की जमाना देखाइए हमरा

सत्य छै इएह मानी की नै मानी


रुबाइ

प्रस्तुत अछि मुन्ना जीक रुबाइ



मोन भए उठल दुखित होहकारीसँ

उठि दर्शक भागल मारामरीसँ

प्रायोजक तँ पथने रहल कान अपन

कर्ता देखार भेला जतियारीसँ

रुबाइ

प्रस्तुत अछि मुन्ना जीक रुबाइ



उमरे वर्षक संग बढ़ि जुआइ छै

नजरि सोंझा-सोंझी भए क' लजाइ छै

प्रेमक भाव जे नै पढ़ि पाबै अछि

तखन बुझू जे ओ हृदैसँ कसाइ अछि

रुबाइ

प्रस्तुत अछि मुन्ना जीक रुबाइ



हिला देलक गगनकेँ मारि तीर

बचा लेलक जे अर्धनग्न चीर

द्रौपदीकेँ बढ़ा वस्त्र केलक रक्षा

संसार भरि बेटल छल वएह वीर

रुबाइ

प्रस्तुत अछि मुन्ना जीक रुबाइ



जखन सभ केओ देखू नेहाल भेलै

तखन बुझू जे गोटी तँ लाल भेलै

दर्शक जखने झूमि उठल मनसँ

तखने तँ संयोजक मालोमाल भेलै

रुबाइ

प्रस्तुत अछि मुन्ना जीक रुबाइ



दिअए सिनेह अपन नेना जानि कए

हमहूँ टुग्गर निमहब अपना मानि कए

जँ छोड़बै अनेरुआ सन हमरा

तँ फफकि मरब एकसर कानि कए

रुबाइ

प्रस्तुत अछि मुन्ना जीक रुबाइ


टूटल छल नेह आब तँ जोड़ भए गेलै

छलै दुश्मन मुदा चितचोर भए गेलै

जखने लिखलकै पाँतीमे मोनक बात

दूनूक नेहक तँ भंडाफोड़ भए गेलै

रुबाइ

प्रस्तुत अछि मुन्ना जीक रुबाइ




जड़ब अहाँ जरू दिया बाती जकाँ

गाएब तँ गाउ जेना पराती जकाँ

ताकि कनखिये मोन ने रिझाउ

अहाँ करू जुनि उकपाती जकाँ

गजल

बाल गजल


भोरे उठि मैदान गेलै बौआ
ओम्हरहिसँ दतमनि तँ लेतै बौआ

पोखरिमे नीकसँ नहेतै धोतै
चिक्कन चुनमुन बनि क' एतै बौआ

सरिएतै पोथी पहिरतै अंगा
इस्कूलो खुब्बे तँ जेतै बौआ

नै रखतै दोस्ती खरापक संगे
पढ़ि बड़का डाक्टर तँ बनतै बौआ

सभहँक करतै मदति सोना बेटा
सदिखन नीके बाट चलतै बौआ



हरेक पाँतिमे दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ-दीर्घ

शुक्रवार, 27 जुलाई 2012

गजल

बाल गजल


पूर्णिमा मेला ऐलए गे माँ

मेला देखऽ हमहुँ जेबए गे माँ


इस्कुल मे सेहो छुट्टी देलकए गे माँ

दोस-मीत मेलाक ओरिओन कैलकए गे माँ


बड़की दैया के संग लऽ लेबए गे माँ

दाए-बाबा के सेहो कहि देबए गे माँ


गामक कतेक लोक मेला चलतए गे माँ

काका-काकी आ बौआ सेहो तैयार भेलए गे माँ


मेला गाम सँ दुर लगए गे माँ

पैरे-पैर नए, तोरा कोरा मे बैठबए गे माँ


मेला मे बड़ भीड़ लगलए गे माँ

आँगुर तोहर धरने रहबए गे माँ


खुब जतन सँ मेला देखबए गे माँ

"शिकुया" घिरनी-मिठाइ-झिल्ली कीनबए गे माँ

गुरुवार, 26 जुलाई 2012

गजल


नेन्ना हम मए केँ आँखि जूराएब
मिथिला केँ अपन सोना सँ चमकाएब

मूरत सभ घरे रामे सिया केँ देखु
एहन आँन कतए मेल देखाएब

गंगा बसति पावन घर घरे मिथिलाक
डुबकी मारि कमला घाट नाहाएब

मुठ्ठी भरि बिया भागक अपन हम रोपि
अपने माटि में हँसि हँसि कँ गौराएब

'मनु' दै सपत घर घुरि आउ काका बाबु
नेन्ना केँ कखन तक कोँढ ठोराएब

(बहरे रजज, २२२१)
जगदानन्द झा 'मनु'  संख्या -६५

बुधवार, 25 जुलाई 2012

गजल





इ जोश आ भरास भगवान बचाबथि
कैल एतेक रास भगवान बचाबथि

बात करी सब चिन्गी लह्काबय केर
मोन सँ ने उच्छास भगवान बचाबथि

देखल हम ढहैत पहारो के अहि ठा
जौ रेत में छी बास भगवान बचाबथि

भोर होइत छैक राति बितलाक बाद
पूरय ने जौ आस भगवान बचाबथि

कहय राजीव आशीर्वाद में दम छैक
राखी ने मिट्ठ भास भगवान बचाबथि


(सरल वार्णिक वर्ण-१५)

राजीव रंजन मिश्र

गजल





आइ हमरा निन्न भैए ने रहल अछि
देखि सबके चालि नोर जे बहल अछि

सब हंसय छैक ठठा क लोकक नामे
दोष अप्पन क्यउ देखि नै रहल अछि

कही ककरा मोन केर इ दरद हम
बनि बकड़ा सब दुःख इ सहल अछि

सुति रहल सब भए गेलय अन्हार
राति जागब हम करै के टहल अछि

बाट तकिते दिन भरि बीतल हमर
राति बितय कोना सौंसे जे पड़ल अछि

प्राण रहिते मुदा हम नै हारब हिया
छाती हमरो बड्ड जीवट भरल अछि


(सरल वर्णिक वर्ण-15)



राजीव रंजन मिश्र

रविवार, 22 जुलाई 2012

रूबाइ

रूबाइ -111

सोनाक हार नै अहाँ के प्यार देब
साड़ी कपड़ा नै नेहक पहाड़ देब
बस दिअ अहाँ संग हमरा अंत घड़ी धरि
लाखो कड़ोर त' नै हँसी हजार देब

गजल

पढ़तै लिखतै बौआ डाँक्टर बनतै
गामे गामे सबहक सेबा करतै

रोगसँ लड़तै रोगी हँसतै गेतै
एकर नामसँ सबटा रोगो डरतै

अपनो बोखारक चिन्ता नै करतै
फर्जी डाँक्टर के चोरी नै चलतै

नामी लोकक किछु कहलो नै करतै
कमजोरो के ओ भैयारी बुझतै

टाका के लोभी कहियो नै बनतै
आशीर्वादे टा के इच्छा रहतै

मिथिला माँ के मैथिल बेटा छी ने
संकट हटतै दुश्मन संगे लड़तै

दस टा दीर्घ सब पाँति मे

गजल

भेल मामा के शगुन हमरो करा दे
सेँट काजर आ पाग पौडर लगा दे

लूटबेँ लेमनचूष आ गीत गाबेँ
सर्ट नवका दे जीँस नवके अना दे

चल फिलम हमरो कैमरा मे बना दे
आब बाबी काकी कने माँ चुमा दे

बंद घर मे नाना कहू की करै छी
कत'सँ एलौ नानी इ टाका बता दे

हम त' बुझलौँ छै खेल कोनो इ नवका
आब नै मानब "अमित" गाड़ी सजा दे

फाइलातुन-मुस्तफइलुन-फाइलातुन
2122-2212-2122
बहरे--खफीफ

गजल



पंखी लगा उड़ि जाएब आकाश मे
बनि कोइली हम गाएब नव भास मे

नै जो पढ़ाबै के लेल इस्कूल माँ
तू जाइ छेँ बदलै घर त' वनवास मे

बाबा अपन खैनी खाइ छथि क'ह किए
की छै मजा जे बाबू रमल ताश मे

हम बीच आँगन एगो बनेबै महल
सोना बहुत उपजेबै अपन चास मे

खरहा पकड़ि रोटी चाह देबै "अमित"
एतै मजा बानर के सफल रास मे

मुस्तफइलुन-मफऊलातु-मुस्तफइलुन
2212-2221-2212

अमित मिश्र

गजल

देखियौ छै इ केहन अजनास बच्चा
लोक के ओ बनेनै छै दास बच्चा

छै बहसि गेल नेना सबहक दुलारसँ
साग फेकै कहै कतरा घास बच्चा

खेल मे मस्त सदिखन गर्दासँ पोतल
पढ़त नै नै बनेतै इतिहास बच्चा

ककर हिम्मत इ मेला ठेला घुमेतै
जीद मे कानतै एकै भास बच्चा

डांस मे गीत मे नंबर एक छै ओ
"अमित" तेँ मानलौँ सब खटरास बच्चा

फाइलातुन-मफाईलुन-फाइलातुन
2122-1222-2122
बहरे-- असम

गजल

 हमर कटहर खाइ लेए देब तोरा
अपन टाका छै लतामक पात जोड़ा

दौड़ कखनो सड़कपर तूँ नै लगा रौ
आगि छूबेँ हाथ मे जेतौ भ' फोड़ा

खेल खेलाएब तीती आ कबड्डी
चोर पुलिसक खेल मे के बनत चोरा

सुरज दादा भोर मे सबके जगाबै
सीतबै छै सगर रातिक'  माँ ल' कोरा

फिलम बाबू संग देखब हँल जेबै
"अमित" चलिहेँ करब बाबू के निहोरा

      फाइलातुन
  2122 तीन बेर
        बहरे-रमल

गजल

चल रे बटोही निनियाँक नव गाम चल
सुतल हमर बौआ चल परी धाम चल

खिस्सा कहेँ गोनू झाक तू चान रे
पवना सिहकि सूखाबैत तूँ घाम चल

मिथिलाक पाहुन सीताक तू भाग क'ह
टूटल घनुष कोनो ब'र बनल राम चल

माटिक त' छै एते मोल एलनि शिवम
ई जनम के चूकाबैत तू दाम चल

लोड़ी जपै छी निनियाँक बजबैत छी
श्वप्न परी बनि बैसल "अमित" बाम चल

मुस्तफइलुन-मफऊलातु-मुस्तफइलुन
2212-2221-2212

गजल


गजल-१५
धऽ जे नांगरि चलल अगुआएल जाय छै
छलै अगुआ जे सैह पछुवाएल जाय छै
क्षण-दू-क्षण लेल जे काज लसियेलै कोनो
अहिना दिने -दिन आर बसिएल जाय छै
जकरा बूइध में छलईयै वियैधि धेने
आब बुइधिए सँ ओहो खियाएल जाय छै
पहिने दूधो - दही के नञि नपना छलय
आब नापिए क पाइनो पियाएल जाय छै
कंठ लागल धिया मांग अनुचित रहय
बेटा बेचै लय बोगली सीयाएल जाय छै
तौला जाधरि भरल ताऽ तऽ सुरसुर केलौं
आब जोड़ण लै टोल छिछियाएल जाय छै
मूंह देखिये कऽ मुंग्बा बाँटय केर चलन
एत भेटै नै किछु सभ दियाएल जाय छै
मोन सखुआ में लागल कुसंगत के घून
किछु निरोगो जे छल बझियाएल जाय छै
कतउ आंचे नञि छै हेतय इनहोर की
कतौ धधरा ततेऽ जे उधियाएल जाय छै
कामधुन में "नवल" सुध छै ककरो कहाँ
आब जोशक लहरि भंसियाएल जाय छै
--- वर्ण- १६ ---
(सरल वार्णिक बहर)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
(तिथि-२७.०६.२०१२)

गजल























गजल / कुन्दन कुमार कर्ण
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नयन नहि रहिते त काजर के चर्चा नहि होर्इतै
ठोर नहि रहिते त मुस्की के बर्षा नहि होर्इतै

फुटिक ऐना मजडीगेल अहाँ के मादक यौवन
यौवन जौँ नहि रहिते त तन में उर्जा नहि होइतै

लज्जावती जकाँ लजाइछी मुस्कार्इत घोघ तानिक
लाज नहि रहिते त घोघसन पर्दा नहि होर्इतै

घायल क देलौ कतेक के बरद नयन के तीरसँ
एकतीर हमरो जौं मारितौं त कोनो हर्जा नहि होर्इतै

मोन होइय हमर अहाँ के अपन छाती में सटाली
हमर र्इ बात जौं मानितौं से अहाँपर कर्जा नहि होर्इतै

शब्द के सागर कम पडिगेल अहाँ के बयान में
र्इ बयान नहि करितौं त समय खर्चा नहि होइतै

आर कतेक लिखु हम अहाँपर भावना में बहिक क
र्इ गजल नहि लिखतौं त गजलकार के दर्जा नहि होइतै

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रचित तिथि : जुन २१, २०१२
पहिलबेर प्रकाशित : २१ जुन, २०१२ (फेसबुक)
© गजलकार
www.facebook.com/mghajal
www.facebook.com/kundan.karna

शनिवार, 21 जुलाई 2012

गजल


बाल गजल



पढि लिखि कए बौआ बाहर रहतै
सत बाबा के कहल आखर रहतै

दिन पलटतय हमरो सबहक
भरल घर नोकर चाकर रहतै

लक्षण करम एकर लागैत अछि
बौआ सबतरि भए धाकर रहतै

मोनक हमरो सुनथिन भगवान
करेज अपन भए चाकर रहतै

माय बहिन खानदानक पुरतय
बौआ सबहक लेल सागर रहतै

बढ़तय दिन दुना राति चारिगुन्ना
भरल नित बौआक गागर रहतै

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण- १४ )


राजीव रंजन मिश्र


गजल



गजल

हम घाट घाट के जानि रहल
हम राह बाट ठेकानि रहल

सबतरि लोक बेहाल छलय
बस सब के सब कानि रहल

लोक प्रकृति संग खेल करय
झरकत से नहि जानि रहल

डाढल अछि लोक समाज ऐना
दिन राति कोनाहूँ गानि रहल

ऐंठल जून्नी सन बात करय
ककरो कहल नै मानि रहल

संज्ञान लियह सब मिलि मीता
ज्ञानी सब याह हकानि रहल


(सरल वार्णिक बहर, वर्ण- १२)

राजीव रंजन मिश्र

शुक्रवार, 20 जुलाई 2012

गजल



बिनु पानिक नाउ चलाएब हम
बिनु चक्काक गाडी बनाएब हम

हमर मोन में तँ जेँ किछु आएत
बिन सोचने सभ सुनाएब हम

अपन ब्याह में हम नहि जाएब
सराध दिन बजा बजाएब हम

कनियाँ केँ लय ओकर नैहर सँ
सासुर सँ खूब कतियाएब हम

'मनु' मन चंचल टोनए सभकेँ
केकरो हाथ नै घुरि आएब हम

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण-१३)
जगदानन्द झा 'मनु'

गजल



मए नहि चरबै लए गाए जेबौ हम
पठा हमरा इस्कूल कोपी पेन लेबौ हम

अपन भाग्य आब हम अपने सँ लिखबौ
कुकूर जकाँ नै माँडे तिरपीत हेबौ हम

रोगहा-रोगहा सभ कियो कहए हमरा
एक दिन बनि डाक्टर रोग हरेबौ हम

टूटल- फूटल अपन फुसक घर तोरि
सुन्नर सभ सँ पैघ महल बनेबौ हम

हमरा कहैत अछि 'मनु' मुर्ख चरबाहा
पढि कए सभ चरबाहा केँ पढेबौ हम

(सरल वार्णिक बहर, वर्ण- १६)
जगदानन्द झा 'मनु'

गुरुवार, 19 जुलाई 2012

गजल



उजरा भात गढका दूध बड़का थारी चाही
नै खेलेबौ कनिया पुतरा नबका गाड़ी चाही

भैया पहिरै नबका अंगा दशमी आ फगुआ
बेटा हमहु छियौ तोहर आब नै छारी चाही

भैया गेन खेलाई छौ टुकटुक हम छी ताकै
दूध भात भ कात नै हेबौ हमरो पारी चाही

काकाजी कान मचोरथि तोडी जखन टुकला
अपन लीची अपने झाँटी हमरा बाड़ी चाही

श्यामा लाई खूब खुवाबे टाटक भुरकी बाटे
ओहि टाटके काटि खसाबी हमरा आरी चाही

रविवार, 15 जुलाई 2012

रूबाइ


जागल आँखि केर सपना बनल जिनगी
कुहरल आश केर झपना बनल जिनगी
फाटल छल करेज हम सीबैत रहलौँ
रूसल सुखक आब नपना बनल जिनगी

गजल


चमकल मुख अहाँक इजोर भऽ गेलै
अधरतिए मे लागै जेना भोर भऽ गेलै

काजर बूझि हमरा नैन मे बसा लिअ
अहाँक नैना मारूक चितचोर भऽ गेलै

कुचरै कौआ रहि रहि मोर आंगन मे
जानि अबैया अहाँक मोन मोर भऽ गेलै

नैनक इशारा दैए प्रेमक निमन्त्रण
आब लाजे कठुआ कऽ बन्न ठोर भऽ गेलै

बनल नाम अहींक "ओम"क प्राण-डोरी
अहाँक आस मे करेज चकोर भऽ गेलै
सरल वार्णिक- १५ वर्ण

गजल


जन-गणक सेवक भेल देशक भार छै
जनताक मारि टका बनल बुधियार छै

चुप छी तँ बूझथि ओ, अहाँ कमजोर छी
मुँह ताकला सँ कहाँ मिलल अधिकार छै

बिन दाम नै वर केर बाप हिलैत अछि
घर मे गरीबक सदिखने अतिचार छै

हक नै गरीबक मारियौ सुनि लियऽ अहाँ
जरि रहल पेटक आगि बनि हथियार छै

झरकल सिनेहक बात "ओम"क की कहू
सगरो पसरल जरल हँसी भरमार छै
(बहरे-कामिल)
मुतफाइलुन(ह्रस्व-ह्रस्व-दीर्घ-ह्रस्व-दीर्घ)- ३ बेर प्रत्येक पाँति मे

शनिवार, 14 जुलाई 2012

गजल



आखर जखन रूपक लिखल
उपमा सजल फूलक लिखल

आदर्श छी रूपक बनल
काजर नयन कातक लिखल

सरगम अहाँक स्वर सजल
मुस्की नगर तानक लिखल

कहलौँ करेजक सब कहल
किछु बात हम राजक लिखल

चमकैत नभ मे छी चान
तारा गजल हाटक लिखल

मुस्तफइलुन-मफऊलातु
2212-2221
बहरे- मुन्सरह

अमित मिश्र

रूबाइ



आकाश जखन कानै छै लोक हँसै छै
आकर्षित भ' इजोतसँ पतिंगे मरै छै
प्रेमक परिणाम होइते छै उटपटांग
जे केलक मरल नै केलक त' जीबै छै

गजल



किछु बात एहन भेल छै
घर घर त' रावण भेल छै

बम फोड़ि छाउर देश छै
जड़ि देह जाड़न भेल छै

प्रिय नै विरह जनमै बहुत
सजि दर्द गायन भेल छै

जिनगी भ' गेल महग कते
झड़कैत सावन भेल छै

दस बात सूनब की "अमित"
सब ठाम गंजन भेल छै

मुतफाइलुन
11212 दू बेर
बहरे -कामिल

अमित मिश्र

रूबाइ


रूबाइ-111 
प्रेमसँ भरल नाह मजधारे भासै छै
सोचल बात सब कोसो दूर भागै छै
इच्छा प्रेमीक त' पूर्ण नै होइ कखनो
तेँए एहि मे आखर अढ़ाइ रहै छै
तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों