गजल / कुन्दन कुमार कर्ण
------------------------------
नयन नहि रहिते त काजर के चर्चा नहि होर्इतै
ठोर नहि रहिते त मुस्की के बर्षा नहि होर्इतै
फुटिक ऐना मजडीगेल अहाँ के मादक यौवन
यौवन जौँ नहि रहिते त तन में उर्जा नहि होइतै
लज्जावती जकाँ लजाइछी मुस्कार्इत घोघ तानिक
लाज नहि रहिते त घोघसन पर्दा नहि होर्इतै
घायल क देलौ कतेक के बरद नयन के तीरसँ
एकतीर हमरो जौं मारितौं त कोनो हर्जा नहि होर्इतै
मोन होइय हमर अहाँ के अपन छाती में सटाली
हमर र्इ बात जौं मानितौं से अहाँपर कर्जा नहि होर्इतै
शब्द के सागर कम पडिगेल अहाँ के बयान में
र्इ बयान नहि करितौं त समय खर्चा नहि होइतै
आर कतेक लिखु हम अहाँपर भावना में बहिक क
र्इ गजल नहि लिखतौं त गजलकार के दर्जा नहि होइतै
--------------------------------------------------
रचित तिथि : जुन २१, २०१२
पहिलबेर प्रकाशित : २१ जुन, २०१२ (फेसबुक)
© गजलकार
www.facebook.com/mghajal
www.facebook.com/kundan.karna
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें