बाल गजल
रानी मेघ सगरो जल पटाएत ना
बौआ हमर खेलत आ नहाएत ना
चलतै ढेह पानिक बीच सड़कपर ना
तै पर कागजक नैया बहाएत ना
देहसँ घाम चूबै रौद छै काल ना
हीटर आब तन के नै बनाएत ना
रोपत धान बैसल खेत के आड़ि ना
कादो करत पालो ह'र चलाएत ना
हेलत साल भरि पोखरि भरल पानि ना
बौआ "अमित" माँछक झोर खाएत ना
मफऊलातु-मफऊलातु-मुस्तफइलुन
2221-2221-2212
बहरे--कबीर
अमित मिश्र
रानी मेघ सगरो जल पटाएत ना
बौआ हमर खेलत आ नहाएत ना
चलतै ढेह पानिक बीच सड़कपर ना
तै पर कागजक नैया बहाएत ना
देहसँ घाम चूबै रौद छै काल ना
हीटर आब तन के नै बनाएत ना
रोपत धान बैसल खेत के आड़ि ना
कादो करत पालो ह'र चलाएत ना
हेलत साल भरि पोखरि भरल पानि ना
बौआ "अमित" माँछक झोर खाएत ना
मफऊलातु-मफऊलातु-मुस्तफइलुन
2221-2221-2212
बहरे--कबीर
अमित मिश्र
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