गजल बिन जिनगी अपन जिबतौं की
शराब में निसा छैक बुझलहुँ हमहुँ
शराब नहि पीबितौं तँ हम पीबितौं की
सभ कहलक नहि दिमाग हमरा में
एहि सँ बेसी लए कए हम करितौं की
दुनियाँ में सभतरि भ ' जाइ सोने सोना
तँ कहु सोना केँ कियो कनिको पूछितौं की
मन मारने 'मनु' बैसल छी नहि बुझू
एते हल्ला में बजितौं तँ अहाँ सुनितौं की
(सरल वार्णिक बहर, वर्ण - १५)
जगदानन्द झा 'मनु'
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