प्रस्तुत अछि श्रीमती इरा मल्लिक जीक ई बाल गजल--------
सौँसे गाम तूँ मारने फिरैछेँ भरिके खूब टहल्ला रौ
जँ पढ़ै लिखै लेल कहबौ तँ बहुत करै छेँ हल्ला रौ
छौँरा सब सँग खेलै छे भरि दिन कबड्डी गुल्ली डँडा
नहि परलौ एखन धरि तोरा बपहियासँ पल्ला रौ
आबय दहिन गाम हुनका देखथुन तोहर लिल्ला
दैवो नहिँ बचेथुन जखन तोरथुन तोर कल्ला रौ
हम्मर बातक मोजर नै कैन्को ख़ूब कर्हि बदमस्ती
एकै बेरक सटकानि सँ खुलि जेतौ ग्यानके तल्ला रौ
आखर 20
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें