गजल-६०
जकरे देह केर घाम चानन सन गमकै छै
तकरे टुटली मरैया स्वर्गक सुख बरसै छै
अनकर माथ पर बज्जर जे कियो खसबै छै
अपने बोलीक लुत्ती से अपने घर जड़बै छै
नवतुरिया छै बुड़िबक बुढ़-पुरान कहै छै
ओहोछलै कहियो नौसिखुए सेनै मोन रहै छै
चुबय ककरो चार केयो भासल भीत सटै छै
खिड़की बुन्न निहारे केयो आनक आड़ि छटै छै
कंठी-माला,चानन-टीका,धोती-कुर्ताखूब सजै छै
लेकिन नाञ्गट-भूखल के देखिते नाक मुनै छै
कन्यागत छै कानि रहल वरागत बिहुँसै छै
केयो खून बेचकऽ देलकै केयो सऽख पुरबै छै
ई की भेलै जे सगरो खाली बहुरुपिया घुमै छै
"चंदन"एलैकलिकाल जे खाली खूनेटा पिबै छै
---------------------वर्ण-१८-----------------
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