गजल-६१
ओ जे बताह बैसल छै सड़कक कात मे
एकोरती नहि लाज छैक ओकरा गात मे
पेटकुनिया लधने जे सूतल एकात मे
दुइयो दाना भातक नहि ओकरा पात मे
दू लबनी पीबि बनै छैक जे नृप साँझ मे
तकरा भेटै ने उसनल अल्हुआ प्रात मे
अपनो घर मे नै कनियो मोजर जकरा
दिल्ली केर सरकार छैक तकरा लात मे
जकरा ले सेहन्ता नवान्नो अपना खेतक
"चंदन"देबै नै पएर तकरा जिरात मे
-------------------वर्ण-१६-----------
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