जेना कि नाम सँ स्पष्ट अछि, बाल गजल माने भेल नेना-भुटकाक लेल गजल। बाल गजलक अवधारणा मैथिली मे एकदम नब अछि आ पहिल बेर २४ मार्च २०१२ केँ श्री आशीष अनचिन्हार ऐ अवधारणा केँ सामने आनलथि। बहुत अल्प समय मे बाल गजल बहुत प्रसिद्धि पओलक आ बाल गजल कहनिहार गजलकार सभक एकटा विशाल पाँति ठाढ भऽ गेल। ऐ मे सर्वश्री गजेन्द्र ठाकुर आ आशीष अनचिन्हार जकाँ स्थापित गजलकार तँ छथि, एकर अलावे नब गजलकार सब सेहो बाल गजल कहबा मे विशेष अभिरूचि देखौलन्हि। बाल गजल कहनिहार नब गजलकार सभ मे सर्वश्री मिहिर झा, मुन्ना जी, इरा मल्लिक, अमित मिश्रा, चन्दन झा, पंकज चौधरी 'नवलश्री', राजीव रंजन झा, जगदानंद झा 'मनु', रूबी झा, प्रशांत मैथिल आदि अनेको गजलकार छथि। "अनचिन्हार आखर", जे मैथिली गजलक एकमात्र ब्लाग अछि, देखला पर पता लागैत अछि जे बाल गजलक अवधारणा अयलाक बाद सँ एखन धरि(ई आलेख लिखबा तक) ७३(तिहत्तरि) टा बाल गजल ऐ ब्लाग पर पोस्ट भऽ चुकल अछि, जे अपने आप मे एकटा कीर्तिमान अछि। खास कऽ एतेक कम समय मे एतेक पोस्ट आएब बाल गजलक लोकप्रियताक खिस्सा कहि रहल अछि। बाल गजलक विधा एकटा स्वतन्त्र विधा बनबाक बाट मे अग्रसर अछि, जे एतेक कम समय मे एतेक संख्या मे बाल गजल कहनिहार गजलकार आ बाल गजलक संख्या सँ स्पष्ट अछि। संगहि किछु लोक केँ मिरचाई सेहो लागब शुरू अछि आ ओ लोकनि बाल गजलक सम्पूर्ण अवधारणा केँ नकारबाक कुत्सित असफल प्रयास मे जत्र कुत्र अंट शंट पोस्ट देबऽ लागलाह। ई गप आर स्पष्ट करैत अछि जे बाल गजलक विधा मजबूती सँ स्थापित भऽ रहल अछि। कियाक तँ सफल व्यक्ति आ विधा सभक आकर्षणक केन्द्र बनैत अछि आ बाल गजल सेहो सभक आकर्षणक केन्द्र बनि चुकल अछि, चाहे ओ गजलकार होईथि, पाठक होईथि, आलोचक होईथि वा जरनिहार लोक सभ होईथि। जखन मैथिलि गजलक चर्च भऽ रहल अछि, तखन श्री आशीष अनचिन्हारक चर्चा स्वभाविक अछि। मैथिली गजलक विकास मे हुनकर योगदान हुनकर धुर विरोधी लोकनि सेहो मानैत छथिन्ह। मैथिली बाल गजलक अवधारणा लेल श्री आशीष अनचिन्हार मैथिली साहित्य मे अपन अनुपम स्थान बना चुकल छथि। बाल गजलक अवधारणा सेहो हुनके छैन्हि, जे बहुत सफल भेल अछि।
आब किछु गप करी मैथिली बाल गजलक रचना सभक संबंध मे। हमरा विचार सँ बाल गजल नेना भुटकाक लेल रूचिगर तँ हेबाके चाही, संगहि ऐ मे कोनो स्पष्ट सामाजिक सनेस होइ तँ ई सोन मे सोहाग जकाँ हएत। ओना तँ सभ बाल गजल कहनिहार गजलकार सभ ऐ मे सक्षम छथि आ नीक सँ नीक बाल गजल लिख रहल छथि, मुदा ऐ सन्दर्भ मे हम श्री गजेन्द्र ठाकुरजीक बाल गजलक उल्लेख करब उचित बूझि रहल छी। हुनकर एकटा बाल गजलक मतला अछिः-
कनियाँ पुतरा छोड़ू आनू बार्बी
जँ रंग गुलाबी छै तँ जानू बार्बी
ऐ गजल केँ पूरा पढि कऽ कने देखियौ। ई गजल कनिया पुतराक उल्लेख करैत नेना-भुटकाक मनोरंजन तँ करिते अछि, संगहि अजुका बाजारवादक बलिवेदी पर कुर्बान भेल मनुक्खक मार्मिक विवेचना सेहो करैत अछि। एहन आरो कतेको बाल गजल सभ "अनचिन्हार आखर" पर भेंटैत अछि, जकरा ऐ ब्लाग पर पढल जा सकैत अछि। ई गजलकार सभक सामाजिक संवेदना केँ प्रकट करैत अछि आ हम ऐ लेल सभ गजलकार केँ साधुवाद दैत छियैन्हि। हम एहने बाल गजलक आस गजलकार सभ सँ लगओने छी। कियाक तँ गजलकारक सामाजिक दायित्व सेहो छै, जे पूरा हेबाक चाही। आधुनिक मैथिली गजलकार सब मे ई क्षमता अछि आ ओ दिन दूर नै अछि जखन एक सँ एक सुन्नर आ बालोपयोगीक संगे सामाजिक समस्या पर बाल गजलक भरमार हएत। व्याकरणक हिसाबेँ मैथिली बाल गजल नीक बाट धएने अछि। अनचिन्हार आखरक टीमक परिश्रमक कारणेँ मैथिली मे बहरयुक्त गजलक काल शुरू भऽ चुकल अछि आ सरल वार्णिक बहर(जकर अवधारणा श्री गजेन्द्र ठाकुरजी देलखिन्ह) केर अलावे आब अरबी बहर मे गजल कहनिहार गजलकारक कमी नै छै। बाल गजल अपन शुरूआते सँ बहरयुक्त अछि, जे बाल गजलक लेल शुभ संकेत अछि। शुरूआतिए समय मे जे आ जतबा बाल गजल लिखल गेल अछि, ओ सभ बहर मे अछि, चाहे सरल वार्णिक बहर होइ वा अरबी बहर। बहरक अलावे रदीफ आ काफियाक नियमक पालन सेहो पूरा पूरा भऽ रहल अछि। व्याकरण पालनक ई प्रतिबद्धता निश्चित रूपे बाल गजलक सफलताक गाथा लिखबा मे सहायक हएत।
मैथिली गजलक बढैत डेग संग आब मैथिली बाल गजलक डेग सेहो उठि गेल अछि। मैथिली बाल गजल जाहि द्रुत गति सँ अपन डेग उठओलक अछि, ऐ सँ तँ यैह लागैत अछि जे अगिला साल आबैत आबैत मैथिली बाल गजलक पोथी प्रकाशित भऽ सकैत अछि। संगहि इसकूलक पाठ्यक्रम मे बाल गजल सम्मिलित हेबाक संभावना सेहो साकार रूप लऽ सकत। पाठ्यक्रम मे सम्मिलित हेबाक बाद मैथिली बाल गजल सभ पढनिहार-पढौनिहारक संज्ञान मे नीक जकाँ आओत आ सामाजिक विकासक संरचना मे अपन महत्वपूर्ण योगदान, जे अपेक्षित अछि, सेहो दऽ सकत।
कनियाँ पुतरा छोड़ू आनू बार्बी
जँ रंग गुलाबी छै तँ जानू बार्बी
ऐ गजल केँ पूरा पढि कऽ कने देखियौ। ई गजल कनिया पुतराक उल्लेख करैत नेना-भुटकाक मनोरंजन तँ करिते अछि, संगहि अजुका बाजारवादक बलिवेदी पर कुर्बान भेल मनुक्खक मार्मिक विवेचना सेहो करैत अछि। एहन आरो कतेको बाल गजल सभ "अनचिन्हार आखर" पर भेंटैत अछि, जकरा ऐ ब्लाग पर पढल जा सकैत अछि। ई गजलकार सभक सामाजिक संवेदना केँ प्रकट करैत अछि आ हम ऐ लेल सभ गजलकार केँ साधुवाद दैत छियैन्हि। हम एहने बाल गजलक आस गजलकार सभ सँ लगओने छी। कियाक तँ गजलकारक सामाजिक दायित्व सेहो छै, जे पूरा हेबाक चाही। आधुनिक मैथिली गजलकार सब मे ई क्षमता अछि आ ओ दिन दूर नै अछि जखन एक सँ एक सुन्नर आ बालोपयोगीक संगे सामाजिक समस्या पर बाल गजलक भरमार हएत। व्याकरणक हिसाबेँ मैथिली बाल गजल नीक बाट धएने अछि। अनचिन्हार आखरक टीमक परिश्रमक कारणेँ मैथिली मे बहरयुक्त गजलक काल शुरू भऽ चुकल अछि आ सरल वार्णिक बहर(जकर अवधारणा श्री गजेन्द्र ठाकुरजी देलखिन्ह) केर अलावे आब अरबी बहर मे गजल कहनिहार गजलकारक कमी नै छै। बाल गजल अपन शुरूआते सँ बहरयुक्त अछि, जे बाल गजलक लेल शुभ संकेत अछि। शुरूआतिए समय मे जे आ जतबा बाल गजल लिखल गेल अछि, ओ सभ बहर मे अछि, चाहे सरल वार्णिक बहर होइ वा अरबी बहर। बहरक अलावे रदीफ आ काफियाक नियमक पालन सेहो पूरा पूरा भऽ रहल अछि। व्याकरण पालनक ई प्रतिबद्धता निश्चित रूपे बाल गजलक सफलताक गाथा लिखबा मे सहायक हएत।
मैथिली गजलक बढैत डेग संग आब मैथिली बाल गजलक डेग सेहो उठि गेल अछि। मैथिली बाल गजल जाहि द्रुत गति सँ अपन डेग उठओलक अछि, ऐ सँ तँ यैह लागैत अछि जे अगिला साल आबैत आबैत मैथिली बाल गजलक पोथी प्रकाशित भऽ सकैत अछि। संगहि इसकूलक पाठ्यक्रम मे बाल गजल सम्मिलित हेबाक संभावना सेहो साकार रूप लऽ सकत। पाठ्यक्रम मे सम्मिलित हेबाक बाद मैथिली बाल गजल सभ पढनिहार-पढौनिहारक संज्ञान मे नीक जकाँ आओत आ सामाजिक विकासक संरचना मे अपन महत्वपूर्ण योगदान, जे अपेक्षित अछि, सेहो दऽ सकत।
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