पंखी लगा उड़ि जाएब आकाश मे
बनि कोइली हम गाएब नव भास मे
नै जो पढ़ाबै के लेल इस्कूल माँ
तू जाइ छेँ बदलै घर त' वनवास मे
बाबा अपन खैनी खाइ छथि क'ह किए
की छै मजा जे बाबू रमल ताश मे
हम बीच आँगन एगो बनेबै महल
सोना बहुत उपजेबै अपन चास मे
खरहा पकड़ि रोटी चाह देबै "अमित"
एतै मजा बानर के सफल रास मे
मुस्तफइलुन-मफऊलातु-मुस्तफइलुन
2212-2221-2212
अमित मिश्र
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