गजल-१६
ई प्रश्न जेऽ उठल आब बाबुक बाद के
भऽ गेल कान ठाढ़ सभ दर-दियाद के
उपजाके बेर में त हांसू पिजा रहल
अहि खेतमें मुदा देत पाइन-खाद के
ममरी तऽ खा गेलै सभ लुझि-लपटि कऽ
जे पेईन में बंचल छै सेऽ पीत गाद के
बांटि-चूटि सभकिछु बखरा लगा लियऽ
सहतैक ई अनेरे बरदिक लाद के
गीजल जेऽ पाईके ओ भीजत की नोरसँ
वानर की जानऽ गेल आदक सुवाद के
भतबऽरी के प्रथा छै चलल गामे-गाम
कहतै समाद केऽ आ सुनतै समाद केऽ
करेज सँ नञि ओ "नवल" पेटसँ छलै
संबंध केर गंध उड़ल संग पाद केऽ***आखर-१५
(सरल वार्णिक बहर)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
(तिथि-२४.०६.२०१२)
ई प्रश्न जेऽ उठल आब बाबुक बाद के
भऽ गेल कान ठाढ़ सभ दर-दियाद के
उपजाके बेर में त हांसू पिजा रहल
अहि खेतमें मुदा देत पाइन-खाद के
ममरी तऽ खा गेलै सभ लुझि-लपटि कऽ
जे पेईन में बंचल छै सेऽ पीत गाद के
बांटि-चूटि सभकिछु बखरा लगा लियऽ
सहतैक ई अनेरे बरदिक लाद के
गीजल जेऽ पाईके ओ भीजत की नोरसँ
वानर की जानऽ गेल आदक सुवाद के
भतबऽरी के प्रथा छै चलल गामे-गाम
कहतै समाद केऽ आ सुनतै समाद केऽ
करेज सँ नञि ओ "नवल" पेटसँ छलै
संबंध केर गंध उड़ल संग पाद केऽ***आखर-१५
(सरल वार्णिक बहर)
©पंकज चौधरी (नवलश्री)
(तिथि-२४.०६.२०१२)
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