गजल / कुन्दन कुमार कर्ण
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सपना त बहुत देखलौं मुदा एको नहि भेल पुरा ।
जीनगीमें पहिल बेर त प्रेम केलौं सेहो रहिगेल अधुरा ।।
नोरसँ भिजल चेहरापर पहिलबेर मुस्कान आयल ।
फुल बुझिक छातीसँ लगलौं सेहो बनिगेल छुरा
जीनगीमें पहिल बेर त प्रेम केलौं सेहो रहिगेल अधुरा ।।
पतझड भेल जीनगीमें मौसम जेना बहार आयल ।
मित बुझिक प्रीत लगेलौं तखनो रहलौं बेसहारा
जीनगीमें पहिल बेर त प्रेम केलौं सेहो रहिगेल अधुरा ।।
सरगम बनिक केयो पहिल बेर दिलमें समायल ।
गजल बुझिक गाब चाहलौं सेहो बनिगेल जोगिरा
जीनगीमें पहिल बेरत प्रेम केलौं सेहो रहिगेल अधुरा ।।
सपना त बहुत देखलौं मुदा एको नहि भेल पुरा ।
जीनगीमें पहिल बेरत प्रेम केलौं सेहो रहिगेल अधुरा ।।
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रचित तिथि - नोभेम्बर २०१०
पहिलबेर प्रकाशित - जनवरी १०, २०१२ (फेसबुक)
© लेखक
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सपना त बहुत देखलौं मुदा एको नहि भेल पुरा ।
जीनगीमें पहिल बेर त प्रेम केलौं सेहो रहिगेल अधुरा ।।
नोरसँ भिजल चेहरापर पहिलबेर मुस्कान आयल ।
फुल बुझिक छातीसँ लगलौं सेहो बनिगेल छुरा
जीनगीमें पहिल बेर त प्रेम केलौं सेहो रहिगेल अधुरा ।।
पतझड भेल जीनगीमें मौसम जेना बहार आयल ।
मित बुझिक प्रीत लगेलौं तखनो रहलौं बेसहारा
जीनगीमें पहिल बेर त प्रेम केलौं सेहो रहिगेल अधुरा ।।
सरगम बनिक केयो पहिल बेर दिलमें समायल ।
गजल बुझिक गाब चाहलौं सेहो बनिगेल जोगिरा
जीनगीमें पहिल बेरत प्रेम केलौं सेहो रहिगेल अधुरा ।।
सपना त बहुत देखलौं मुदा एको नहि भेल पुरा ।
जीनगीमें पहिल बेरत प्रेम केलौं सेहो रहिगेल अधुरा ।।
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रचित तिथि - नोभेम्बर २०१०
पहिलबेर प्रकाशित - जनवरी १०, २०१२ (फेसबुक)
© लेखक
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