बुधवार, 16 जनवरी 2013

गजल


तिला संक्रातिकेँ खिच्चैर खाले रौ हमर बौआ
ल’जेतौ नै तँ कनिए कालमे ओ आबिते कौआ

चलै बुच्ची सखी सभ लाइ मुरही किन कए आनी
अपन माएसँ झटपट माँगि नेने आबि जो ढौआ

बलानक घाट मेलामे कते घुमि घुमि मजा केलक
किए घर आबिते मातर बुढ़ीया गेल भय थौआ

कियो खुश भेल गुर तिल पाबि मुरही खुब कियो फाँकेँ
ललन बाबा किए झूमैत एना पी कए पौआ

सगर कमलाक धारक बाटमे बड़ रमणगर मेला
किए सभ एतए एलै कि भेलै ‘मनु’ कुनो हौआ

(बहरे हजज, मात्रा क्रम १२२२-१२२२-१२२२-१२२२)
जगदानन्द झा 'मनु'

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तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों