गजल
जँ सागर भरि घाम खसलै
तखन आँगन चुल्हि जड़लै
मरल जहिया लाज ककरो
हमर तहिया केश कटलै
कतहुँ नै एकान्त भेटल
सगर मन अपनेसँ लड़लै
बनल राधा आगि आजुक
किशन मुरली छोड़ि टहलै
नगर बाजै बोल दोसर
कहाँ पहिलुक गाम बसलै
कतऽसँ एलै पत्र फाटल
पता नै बिनु नाउ छपलै
टहलि एलौं देश दुनियाँ
कहाँ मोनक वेग थम्हलै
मफाइलुन-फाइलातुन
1222-2122
बहरे मजरिअ
अमित मिश्र
जँ सागर भरि घाम खसलै
तखन आँगन चुल्हि जड़लै
मरल जहिया लाज ककरो
हमर तहिया केश कटलै
कतहुँ नै एकान्त भेटल
सगर मन अपनेसँ लड़लै
बनल राधा आगि आजुक
किशन मुरली छोड़ि टहलै
नगर बाजै बोल दोसर
कहाँ पहिलुक गाम बसलै
कतऽसँ एलै पत्र फाटल
पता नै बिनु नाउ छपलै
टहलि एलौं देश दुनियाँ
कहाँ मोनक वेग थम्हलै
मफाइलुन-फाइलातुन
1222-2122
बहरे मजरिअ
अमित मिश्र
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