गजल-1.34
मूँहपर जाबी बान्हल अछि
गारि मारिसँ जी दागल अछि
नै बजै लुब लुब जँहि तँहि तेँ
छाप कमजोरक छापल अछि
नव तलाकसँ बड सीताकेँ
संग निज रामक छूटल अछि
काज किछु नै नामे बिकतै
ब्राँड सुनि मेला लागल अछि
एक टा लुत्ती बेसी छै
आगि ईर्ष्या सन धधकल अछि
"अमित" बूझै बड़का काबिल
तेँ समाजसँ ओ बारल अछि
2122-2222
अमित मिश्र
मूँहपर जाबी बान्हल अछि
गारि मारिसँ जी दागल अछि
नै बजै लुब लुब जँहि तँहि तेँ
छाप कमजोरक छापल अछि
नव तलाकसँ बड सीताकेँ
संग निज रामक छूटल अछि
काज किछु नै नामे बिकतै
ब्राँड सुनि मेला लागल अछि
एक टा लुत्ती बेसी छै
आगि ईर्ष्या सन धधकल अछि
"अमित" बूझै बड़का काबिल
तेँ समाजसँ ओ बारल अछि
2122-2222
अमित मिश्र
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