गजल-1.30
घर घरमे तँ रावण बसल ,छै राम कतऽ
लंका कलयुगक बड ,अयोध्या धाम कतऽ
अधिकारी अहुरिया भले घुसहा कटै
टाका खूब पीटै मुदा आराम कतऽ
ओ जे मीत बनि दर्द दुख सबहक हरै
ओकर घाव भरि देत एहन बाम कतऽ
धैरज धरब से आब नै हिम्मत बचल
ई मरुभूमिमे लोक-बेदक गाम कतऽ
चोरक लेल चोरीसँ बढ़ियाँ काज नै
एहन लोकमे मोहनतकेँ घाम कतऽ
निर्धन लेल छै लिखल बस भूखल रहब
झड़कल देहकेँ पेठियोमे दाम कतऽ
मफाऊलातु-मुस्तफइलुन-मुस्तफइलुन
2221-2212-2212
अमित मिश्र
घर घरमे तँ रावण बसल ,छै राम कतऽ
लंका कलयुगक बड ,अयोध्या धाम कतऽ
अधिकारी अहुरिया भले घुसहा कटै
टाका खूब पीटै मुदा आराम कतऽ
ओ जे मीत बनि दर्द दुख सबहक हरै
ओकर घाव भरि देत एहन बाम कतऽ
धैरज धरब से आब नै हिम्मत बचल
ई मरुभूमिमे लोक-बेदक गाम कतऽ
चोरक लेल चोरीसँ बढ़ियाँ काज नै
एहन लोकमे मोहनतकेँ घाम कतऽ
निर्धन लेल छै लिखल बस भूखल रहब
झड़कल देहकेँ पेठियोमे दाम कतऽ
मफाऊलातु-मुस्तफइलुन-मुस्तफइलुन
2221-2212-2212
अमित मिश्र
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