गजल
देह काँपै देख एहन आतंककेँ
लोक पुतला बनल अनमन आतंककेँ
साँसमे गंधक घुसल खूनक पेय छै
देशमे बस बचल जीवन आतंककेँ
राम जानै आब केकर बलि पड़त तें
संग मिल सब करत सेवन आतंककेँ
छोड़ि देलक खेत पड़ता सब खेतिहर
बाढ़ि बनि एबे करत तन आतंककेँ
जीब रहलै अपन अपनौती लेल सब
आइ मीते बनल जोड़न आतंककेँ
घर अपन मजगूत करियौ विश्वासकेँ
चार अपने खसत एहन आतंककेँ
फाइलातुन-फाइलातुन-मुस्तफइलुन
2122-2122-2212
बहरे-जदीद
अमित मिश्र
देह काँपै देख एहन आतंककेँ
लोक पुतला बनल अनमन आतंककेँ
साँसमे गंधक घुसल खूनक पेय छै
देशमे बस बचल जीवन आतंककेँ
राम जानै आब केकर बलि पड़त तें
संग मिल सब करत सेवन आतंककेँ
छोड़ि देलक खेत पड़ता सब खेतिहर
बाढ़ि बनि एबे करत तन आतंककेँ
जीब रहलै अपन अपनौती लेल सब
आइ मीते बनल जोड़न आतंककेँ
घर अपन मजगूत करियौ विश्वासकेँ
चार अपने खसत एहन आतंककेँ
फाइलातुन-फाइलातुन-मुस्तफइलुन
2122-2122-2212
बहरे-जदीद
अमित मिश्र
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