एकटा पुरान नवसिखुआ गजल-1.27
दू मुहाँ साँप कुर्सीपर बचल रहऽ भाइ
ओकरे हाथ सत्ता छै हटल रहऽ भाइ
करिहऽ अनघोल नै दोसर गपक नै मोल
बहिर लऽग अनशनसँ सदिखन बचल रहऽ भाइ
सुनऽ मरै बेर नै सऽर-कुटुम काजे एतऽ
नीक कर्मक बले जगमे अड़ल रहऽ भाइ
जगह आ पानि चलते बहल खूनक नहर
छोट सन आफतसँ नै तूँ जड़ल रहऽ भाइ
ठक उचक्कासँ चोरक भीड़ बड लधलाह
छै गुरू ई "अमित" तेँ तूँ कटल रहऽ भाइ
2122-1222-1222-1
अमित मिश्र
दू मुहाँ साँप कुर्सीपर बचल रहऽ भाइ
ओकरे हाथ सत्ता छै हटल रहऽ भाइ
करिहऽ अनघोल नै दोसर गपक नै मोल
बहिर लऽग अनशनसँ सदिखन बचल रहऽ भाइ
सुनऽ मरै बेर नै सऽर-कुटुम काजे एतऽ
नीक कर्मक बले जगमे अड़ल रहऽ भाइ
जगह आ पानि चलते बहल खूनक नहर
छोट सन आफतसँ नै तूँ जड़ल रहऽ भाइ
ठक उचक्कासँ चोरक भीड़ बड लधलाह
छै गुरू ई "अमित" तेँ तूँ कटल रहऽ भाइ
2122-1222-1222-1
अमित मिश्र
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें