गजल-1.32
निज मोनमे सबटा जोड़
भरि नगरमे बहुते चोर
बड दर्द दै छूटल घाव
नै गड़ल मुर्दाकेँ कोर
कानब-खिजब कर तूँ बन्न
शरबत तँ नै छै ई नोर
नारी बढ़ल आगू सबसँ
घोघ प्रथा एखन तोड़
किछु किछु जमा सब दिन करब
जरुरति पड़ै चुकरी फोड़
ककरो खबरि नै छै "अमित"
लेतै कखन जीवन मोड़
मुस्तफइलुन-मफऊलात
2212-2221
बहरे-मुन्सरह
अमित मिश्र
निज मोनमे सबटा जोड़
भरि नगरमे बहुते चोर
बड दर्द दै छूटल घाव
नै गड़ल मुर्दाकेँ कोर
कानब-खिजब कर तूँ बन्न
शरबत तँ नै छै ई नोर
नारी बढ़ल आगू सबसँ
घोघ प्रथा एखन तोड़
किछु किछु जमा सब दिन करब
जरुरति पड़ै चुकरी फोड़
ककरो खबरि नै छै "अमित"
लेतै कखन जीवन मोड़
मुस्तफइलुन-मफऊलात
2212-2221
बहरे-मुन्सरह
अमित मिश्र
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