गजल
चन्नोपर तँ दुनियाँ बसि सकै छै आब
लेबै ठानि यदि के रोकि सकतै आब
जीतक लेल मिसियो भरि तँ चाही भूख
भूखल शेर लऽग ई मृग कतसँ बचतै आब
मंदिर बनल ने मस्जिद बनल चौकपर
नव घरमे शराबक पानि बहतै आब
अपने घर तँ ठनका खसल भैयारीसँ
माँ बापो बटैया लागि जेतै आब
साहित्यो बपौटी बनल बिकतै "अमित"
सत्यक फेर देखू घेँट कटतै आब
मफऊलातु
2221 तीन बेर
अमित मिश्र
चन्नोपर तँ दुनियाँ बसि सकै छै आब
लेबै ठानि यदि के रोकि सकतै आब
जीतक लेल मिसियो भरि तँ चाही भूख
भूखल शेर लऽग ई मृग कतसँ बचतै आब
मंदिर बनल ने मस्जिद बनल चौकपर
नव घरमे शराबक पानि बहतै आब
अपने घर तँ ठनका खसल भैयारीसँ
माँ बापो बटैया लागि जेतै आब
साहित्यो बपौटी बनल बिकतै "अमित"
सत्यक फेर देखू घेँट कटतै आब
मफऊलातु
2221 तीन बेर
अमित मिश्र
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