गजल-1
प्रेमक पवन बहै दर्द हेबे करत
शीतक समीर तँ सर्द हेबे करत
बाटक दिक नै भुतिया गेलौं संसारमे
कि श्वप्नक खजाना गर्द हेबे करत
जखन भाग्यक ठोकर लागत मनुख केँ
कर्तव्य-कर्मक पथ फर्द हेबे करत
जँ बीच बजार लुटतै केकरो इज्जत
आगू बढ़ि जनानियों मर्द हेबे करत
तोड़ि देलौँ करेजक नस एक झूठ सँ
आब अपनो समांग बेदर्द हेबे करत
गामक लोक बसि रहल शहर जाकऽ
निज संबंध सुमित फर्द हेबे करत
सुमित मिश्र
प्रेमक पवन बहै दर्द हेबे करत
शीतक समीर तँ सर्द हेबे करत
बाटक दिक नै भुतिया गेलौं संसारमे
कि श्वप्नक खजाना गर्द हेबे करत
जखन भाग्यक ठोकर लागत मनुख केँ
कर्तव्य-कर्मक पथ फर्द हेबे करत
जँ बीच बजार लुटतै केकरो इज्जत
आगू बढ़ि जनानियों मर्द हेबे करत
तोड़ि देलौँ करेजक नस एक झूठ सँ
आब अपनो समांग बेदर्द हेबे करत
गामक लोक बसि रहल शहर जाकऽ
निज संबंध सुमित फर्द हेबे करत
सुमित मिश्र
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