गजल-1.35
गुरू बैसल रहै चेला गगन छूबै
चलन एहन कते पहिने भए एलै
मरल गाँधी गलल खाधी सड़ल चरखा
कने खा मारि समयक सब बदलि गेलै
उठल ई प्रश्न लाशक मोनमे हेतै
किए कानैछ जे जीयल कना गेलै
जखन शेरक नजरिमे हिरणक नजरि फँसलै
कतौ भूखक कतौ भयमे चरम भेलै
नदीकेँ देख ओकर मार्गदर्शक नै
छलौ तोहर "अमित" तैयो भटकि चललै
1222 तीन बेर सब पाँतिमे
बहरे-हजज
अमित मिश्र
गुरू बैसल रहै चेला गगन छूबै
चलन एहन कते पहिने भए एलै
मरल गाँधी गलल खाधी सड़ल चरखा
कने खा मारि समयक सब बदलि गेलै
उठल ई प्रश्न लाशक मोनमे हेतै
किए कानैछ जे जीयल कना गेलै
जखन शेरक नजरिमे हिरणक नजरि फँसलै
कतौ भूखक कतौ भयमे चरम भेलै
नदीकेँ देख ओकर मार्गदर्शक नै
छलौ तोहर "अमित" तैयो भटकि चललै
1222 तीन बेर सब पाँतिमे
बहरे-हजज
अमित मिश्र
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