गजल-४५
जग भरिक उपरागसँ अकच्छ भेल छी
राति-दिन लागैत दागसँ अकच्छ भेल छी
मौध मुँह पर मुदा मोन माहुर भरल
ऐ फुसियाहा अनुरागसँ अकच्छ भेल छी
हम जँ बजलौं अहाँसँ त' रुसि रहता ओ
ई संबंधक गुणा-भागसँ अकच्छ भेल छी
दंश सहलौं कते मिसिया भरि मौध लेल
प्रेमक मधुर परागसँ अकच्छ भेल छी
"नवल" टूटितै नै जे निन्न होएतै एहन
राति-राति भरिक जागसँ अकच्छ भेल छी
*आखर-१६ (तिथि-०३.०१.२०१३)
©पंकज चौधरी "नवलश्री"
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