गजल
अनठेने रहू गप आइ परिस्थिति वश
छै बोलीसँ रण गरमाइ परिस्थिति वश
लक्ष्मी नै जनम लै सबहक घरमे तेँ
की रामे बनत भौजाइ परिस्थिति वश
कतबो क्रूर मोनक ई मनुखे छै तेँ
सगर प्रेम झटहा खाइ परिस्थिति वश
ककरो वश कहाँ छै समयक सुइयापर
जतऽ छै ओतऽ बड घुरियाइ परिस्थिति वश
टाका झूठपर आशा कर नै एखन
धधकै जे क्षणे सेराइ परिस्थिति वश
कृत्रिम जगतमे स्वार्थक जहरसँ मारल
तेँ एते "अमित" पगलाइ परिस्थिति वश
मफऊलातु-मफऊलातु-मफाईलुन
2221-2221-1222
अमित मिश्र
अनठेने रहू गप आइ परिस्थिति वश
छै बोलीसँ रण गरमाइ परिस्थिति वश
लक्ष्मी नै जनम लै सबहक घरमे तेँ
की रामे बनत भौजाइ परिस्थिति वश
कतबो क्रूर मोनक ई मनुखे छै तेँ
सगर प्रेम झटहा खाइ परिस्थिति वश
ककरो वश कहाँ छै समयक सुइयापर
जतऽ छै ओतऽ बड घुरियाइ परिस्थिति वश
टाका झूठपर आशा कर नै एखन
धधकै जे क्षणे सेराइ परिस्थिति वश
कृत्रिम जगतमे स्वार्थक जहरसँ मारल
तेँ एते "अमित" पगलाइ परिस्थिति वश
मफऊलातु-मफऊलातु-मफाईलुन
2221-2221-1222
अमित मिश्र
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