गुरुवार, 31 जनवरी 2013

गजल

गजल-1.29

केश नै भेल छै रौदमे खूब उज्जर हुनक
जहर अनुभवक पी चाम घोघचल पातर हुनक

पिंजरा बंद सुग्गाक परमेँ तँ नै दम बचल
उपर नभ देख बड बहल नैनसँ सागर हुनक

तीर्थ बहुते करै छथि किए बूढ़ से जानि लिअ
एकसर घर जहल बनल जीवन तँ भरिगर हुनक

मोन नै बदलि पेलौं तँ नव हाउ पहिरैसँ की
छोड़ि दिअ ढ़ोंग सबटा अहाँ भजन आखर हुनक

सुखक कखनो तँ कखनो दुखक बून्न पड़बे करत
साँस घबराहटक नै जनै मोन दोसर हुनक

सफलता सब जगह जीत सदिखन तँ भेटै "अमित"
पतझड़क समय नै हो कतौ घरसँ बाहर हुनक

फाइलुन
212 पाँच बेर सब पाँतिमे
बहरे-मुतदारिक

अमित मिश्र

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तोहर मतलब प्रेम प्रेमक मतलब जीवन आ जीवनक मतलब तों